सपने बुनियाद हो जिसकी ,
ऐसी नाव जब चले,
तो थर्रा उठते है किनारे भी |
अब होगा इंतजार इन सपनोंको,
मंजिल की छाव का |
धुंदली होगी ये धरा ,
और गुजरे होंगे हम,
आनेवाले कल में,
फिर भी ,
हिंदुस्तान के नवनिर्माण का बसेरा रहे,
पल-पल हमारे दिल में|
---- शिवरंजन कोळवणकर
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