Friday, September 3, 2010

बुनियाद

सपने बुनियाद हो जिसकी , 
ऐसी नाव जब चले,
तो थर्रा उठते है किनारे भी |
 

अब होगा इंतजार इन सपनोंको,
मंजिल की छाव का |

धुंदली होगी ये धरा ,
और गुजरे होंगे हम,
आनेवाले कल में,

फिर भी ,
हिंदुस्तान के नवनिर्माण का बसेरा रहे,
पल-पल हमारे दिल में|


                  
                          ---- शिवरंजन कोळवकर

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